Wednesday, April 1, 2009

सच है महज़ संघर्ष ही

सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |

संघर्ष से हट कर जिए तो क्या जिए हम या की तुम |
जो नत हुआ वह मृत हुआ, ज्यों वृंत से झर कर कुसुम ||
जो लक्ष्य भूल रुका नही,
जो हार देख झुका नही,
जिसने प्रणय पाथेय मन जीत उसकी ही रही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |

ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे|
जो है जहाँ, चुपचाप अपने आप से लड़ता रहे|
जो भी परिस्थितियाँ मिलें,
काटें चुभे कलियाँ खिले,
हारे नही इंसान , संदेश जीवन का यही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |

हमने रचा आओ हमीं अब तोड़ दे इस प्यार को|
यह क्या मिलन, मिलना वही जो मोड़ दे मझधार को |
जो साथ फूलों के पले,
जो ढाल पाते ही ढले,
वह जिंदगी क्या जिंदगी, जो सिर्फ़ पानी सी बही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |

संसार सारा आदमी की चल देख हुआ चकित|
पर झांक के देखो दृगों में, है सभी प्यासे थकित|
जब तक बंधी है चेतना,
जब तक ह्रदय दुःख से घना,
तब तक न मानूंगा कभी, इस राह को ही मैं सही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |

अपने ह्रदय का सत्य अपने आप हमको खोजना|
अपने नयन का नीर अपने आप हमको खोजना|
आकाश सुख देगा नही,
धरती पसीजी है कहीं,
जिससे ह्रदय हो बल मिले, है ध्येय अपना तो वही|
सच हम नही, सच तुम नही, सच है महज़ संघर्ष ही |

जगदीश गुप्त