Wednesday, June 10, 2009

मौन करुणा

मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ |

जानता हूँ इस जगत में फूल की है आयु कितनी ,
और यौवन की उभरती साँस में है वायु कितनी ,
इसलिए आकाश का विस्तार सारा चाहता हूँ |
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ ||

प्रश्न-चिन्हों में उठी हैं भाग्य-सागर की हिलोरें,
आँसुओं से रहित होंगी क्या नयन की नमित कोरें।
जो तुम्हे कर दे द्रवित वह अश्रु-धारा चाहता हूँ ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ ||

जोड़ कर कण - कण कृपण आकाश ने तारे सजाए,
जो की उज्ज्वल हैं पर क्या किसी के काम आए ,
प्राण मैं तो मार्ग दर्शक बस एक तारा चाहता हूँ |
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ ||

यह उठा कैसा प्रभंजन जुड़ गयी जैसे दिशाएँ,
एक तरणी एक नाविक और कितनी आपदाएं ,
क्या करूं मझधार में ही मैं किनारा चाहता हूँ |
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ ||

राम कुमार वर्मा